डा. महेंद्रभटनागर का बाल काव्य-संग्रह हँस-हँस गाने गाएँ हम !
कविताएँ
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1 वर्षा
2 खेलें खेल
3 अच्छे लड़के
5 माँ
6 हम ....
7 काम हमारा
8 हमारा देश
9 हिमालय
10 दीपावली
11 सबेरा
12 बादल
14 किशोर
15 हम मुसकुराएंगे!
16 महान् ध्रुव
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[1] वर्षा
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सर-सर करती चले हवा
पानी बरसे झम-झम-झम !
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आगे-आगे
गरमी भागे
हँस-हँस गाने गाएँ हम !
सर-सर करती चले हवा
पानी बरसे झम-झम-झम
.
मेंढ़क बोलें
पंछी डोलें
बादल गरजें; जैसे बम !
सर-सर करती चले हवा
पानी बरसे झम-झम-झम !
.
नाव चलाएँ
ख़ूब नहाएँ
आओ कूदें धम्मक - धम !
सर-सर करती चले हवा
पानी बरसे झम-झम-झम !
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[2] खेलें खेल
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छुक-छुक करती आयी रेल
आओ, हिल-मिल खेलें खेल !
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आँख-मिचैनी, खो-खो और
दौड़ा-भागी सब-सब ठौर !
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टिन्नू मिन्नू पिन्नू साथ
हँस-हँस और मिला कर हाथ !
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कूदें - फादें घर दीवार
चाहें जीतें, चाहें हार !
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कसरत करना हमको रोज़
ताक़तवर हो अपनी फ़ौज !
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सब कुछ करने को तैयार;
नहीं कभी भी हों बीमार !
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आपस में हम रक्खें मेल !
.
छुक-छुक करती आयी रेल
आओ, हिल-मिल खेलें खेल !
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[3] अच्छे लड़के
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हम बालक हैं, हम बन्दर हैं,
हम भोले-भाले सुन्दर हैं !
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हर रोज़ सुबह उठ जाते हैं,
मुँह धोकर बिस्कुट खाते हैं !
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दो कप चाय गरम जब मिलती
तब यह सूरत जाकर खिलती !
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फिर, पंडितजी से पढ़ते हैं,
हम नहीं किसी से लड़ते हैं !
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माँ के कहने पर चलते हैं,
ना रोते और मचलते हैं !
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दिन भर हँसते-गाते रहते,
भारत-माता की जय कहते !
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हम रहते भाई मिल-जुल कर
हो भला हमें फिर किसका डर ?
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[4] जागो
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चहक रहीं है चिड़ियाँ चीं-चीं
तुमने अब क्यों आँखें मीचीं ?
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हुआ सबेरा जागो भैया
जागा तोता, जागी गैया !
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यदि जल्दी उठ जाओगे,
तो खूब मिठाई पाओगे !
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अम्मा ने चाय बनायी है,
मीठा हलुआ भी लायी है !
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खाना है तो बिस्तर छोड़ो,
फ़ौरन मुँह को धोने दौड़ो !
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[5] माँ
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माँ ! तू हमको प्राणों से भी प्यारी है !
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मीठा दूध पिलाती है
रोटी रोज़ खिलाती है
हँस-हँस पास बुलाती है
गा-गा गीत सुलाती है
दुनिया की सब चीज़ों से तू न्यारी है !
माँ ! तू हमको प्राणों से भी प्यारी है !
.
कहती हर रात कहानी,
बातें अपनी पहचानी,
सुन जिनको हम खुश होते
सुख सपनों में जा सोते,
हे माँ तुझ पर सब वैभव बलिहारी है !
माँ ! तू हमको प्राणों से भी प्यारी है !
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[6] हम ....
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हम छोटे - छोटे भोले - भाले सारे बाल
पढ़-लिख पर जल्द बनेंगे वीर जवाहरलाल !
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अच्छे-अच्छे काम करेंगे
नहीं किसी से ज़रा डरेंगे
दुनिया में कुछ नाम करेंगे
भारत-माता को कर देंगे हम मालामाल !
पढ़-लिख कर जल्द बनेंगे वीर जवाहरलाल!
हम छोटे - छोटे भोले - भाले सारे बाल !
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जन-जन का दुख दूर करेंगे
सेवा हम भरपूर करेंगे
बाधा चकनाचूर करेंगे
झूठे धोखेबाजों की नहीं गलेगी दाल !
पढ़-लिख कर जल्द बनेंगे वीर जवाहरलाल !
हम छोटे - छोटे भोले - भाले सारे बाल !
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[7] काम हमारा
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भारत की आशा हैं हम, बलवान,
साहसी, वीर बनेंगे,
इसकी सीमा-रक्षा को हँस-
हँस, सैनिक रणधीर बनेंगे!
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हमको आगे बढ़ते जाना,
हर पर्वत पर चढ़ते जाना,
भूल न पीछे पैर हटाना,
इतना केवल काम हमारा !
कितना सुन्दर, कितना प्यारा !
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भारत के दिल की धड़कन हम
थक कर बैठ नहीं जाएंगे,
भूख-ग़रीबी का युग जब-तक
है, चैन न किंचित पाएंगे!
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घर-घर में जा दीप जलाना,
रोते हैं जो उन्हें हँसाना,
आज़ादी के गाने गाना,
इतना केवल काम हमारा !
कितना सुन्दर, कितना प्यारा !
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[8] हमारा देश
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आज हमारा देश नया है !
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ये खेत हज़ारों मीलों तक
फैले हैं कितने हरे- हरे,
गेहूँ-मक्का-दाल-चने-जौ
चावल से सारे भरे - भरे !
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धरती-माँ का वेश नया है !
आज हमारा देश नया है !
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इसमें चिड़ियाँ नीली-पीली
सित-लाल-गुलाबी गाती हैं,
ऊषा अपने गालों पर प्रति-
दिन नूतन रंग सजाती है !
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बुरा अँधेरा बीत गया है !
आज हमारा देश नया है !
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[9] हिमालय
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भारत-माँ का ताज हिमालय !
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ऊँचा-ऊँचा नभ को छूता,
युग-युग जगने वाला प्रहरी,
जगमग-जगमग करता जिसमें
किरनों से मिल बर्फ़-सुनहरी,
.
तूफ़ानों का या हमलों का
जिसको न कभी भी लगता भय !
भारत-माँ का ताज हिमालय !
.
बहती जिसमें माला-सी दो
गंगा - यमुना की धाराएँ,
टकरा-टकरा कर छाती से
जिसके जाती बरस घटाएँ,
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हरी-भरी की धरती जिसने
किया हमारा जीवन सुखमय !
भारत-माँ का ताज हिमालय !
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[10] दीपावली
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जगमग-जगमग करते दीपक
लगते कितने मनहर प्यारे,
मानों आज उतर आये हैं
अम्बर से धरती पर तारे !
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दीपों का त्योहार मनुज के
अतंर-तम को दूर करेगा,
दीपों का त्योहार मनुज के
नयनों में फिर स्नेह भरेगा!
.
धन आपस में बाँट-बूट कर
एक नया नाता जोड़ेंगे,
और उमंगों की फुलझड़ियाँ
घर-घर में सुख से छोड़ेंगे !
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दीपावलि का स्वागत करने
आओ हम भी दीप जलाएँ,
दीपावलि का स्वागत करने
आओ हम भी नाचे गाएँ !
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[11] सबेरा
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हर रोज़ सबेरा होता है !
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ज्यों ही दूर गगन में उड़कर
यह काली-काली रात गयी-
झट सूरज पूरब से आकर
बिखरा देता है धूप नयी !
जग जाता है ‘जिम्मी’ मेरा
फिर और न पलभर सोता है !
हर रोज़ सबेरा होता है !
.
चिड़ियाँ घर-घर में चीं-चीं
शोर मचातीं, गाती आतीं,
सोई ‘जीजी’ को शरमातीं
और जगाकर उड़-उड़ जातीं,
सब अपने कामों में लगते
आराम सभी का खोता है !
हर रोज़ सबेरा होता है !
.
टन-टन बजती घंटी चलते
धरती पर जब दो बैल बड़े
देखो हल लेकर जाने को
हैं, कितने पथ पर कृषक खड़े,
खेतों में जाकर इसी समय
‘होरी’ फसलें बोता है !
हर रोज़ सबेरा होता है !
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[12] बादल
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ये घनघोर बरसते श्यामल-बादल !
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निर्भय नभ में उमड़-घुमड़ कर छाए,
देख धरा ने नाना रूप सजाए,
स्वागत करने नव-वृक्ष उमग आए,
पल्लव-पल्लव में आज मची हलचल !
ये घनघोर बरसते श्यामल-बादल !
.
नदियाँ जल से पूर गयीं मटमैली,
गिट्टक-टिल्लू ने मिल होली खेली,
हाथों में कागज़ की नावें ले लीं,
सड़कों पर पानी, गलियों में दलदल !
ये घनघोर बरसते श्यामल-बादल !
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तालों पर मेंढ़क करते टर-टर-टर,
दीपक पर दीमक़ उड़ती फर-फर-फर,
आओ झूला झूलें जी भर-भर कर,
सुख पाएँ वर्षा का सब बाल-सरल !
ये घनघोर बरसते श्यामल-बादल !
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[13] चाँद
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चाँद आसमान में निकल रहा,
श्याम रूप रात का बदल रहा !
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मुँह पुनीत प्यार से भरा हुआ,
मन सरल दुलार से भरा हुआ,
.
आ रहा किसी सुदेश से अभी,
मंद - मंद मुसकरा रहा तभी !
.
साथ रोशनी नयी लिए हुए,
वेश मौन साधु-सा किए हुए ;
.
नींद का संदेश भेजता हुआ ,
स्वप्न भूमि पर बिखेरता हुआ,
.
दूर के पहाड़ से सरक-सरक,
झूल पेड़-पेड़ में, झलक-झलक,
.
और है न ध्यान, खेल में मगन,
सिर्फ़ एक दौड़ की लगी लगन !
.
आसमान चढ़ रहा बिना रुके,
ढाल औ' चढ़ाव पर बिना झुके !
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चाँद का बड़ा दुरूह काज है,
व्योम का तभी न चाँद ताज है !
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[14] किशोर
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शेर-से दहाड़ते चलो,
आसमान फाड़ते चलो !
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वीर हो महान देश हिंद के विजय करो,
मातृभूमि की व्यथा-जलन समस्त तुम हरो,
देख मौत सामने नहीं डरो, नहीं डरो !
तुम स्वतंत्र-स्वर्ण नव-प्रभात के हरेक
शत्रु को पछाड़ते चलो !
शेर से दहाड़ते चलो,
आसमान फाड़ते चलो !
.
देख आँधियाँ डरावनी नहीं, कभी रुको,
साहसी किशोर शक्तिमान हो, नहीं झुको,
भूख-प्यास झेलते बढ़ो, नहीं कभी थको !
राह रोकता मिले अगर कहीं पहाड़ तो
उसे उखाड़ते चलो !
शेर-से दहाड़ते चलो,
आसमान फाड़ते चलो !
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[15] हम मुसकराएंगे
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संकटों में भी सदा हम मुसकराएंगे !
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हम करेंगे सामना तूफ़ान का
डर नहीं हमको तनिक भी प्राण का
ध्यान केवल मातृ - भू के मान का
देश की स्वाधीनता के गीत गाएंगे !
संकटों में भी सदा हम मुसकराएंगे !
.
हो भले ही राह में बाधा प्रबल
हम रहेंगे निज भरोसे पर अटल,
एकता हमको बनाएगी सबल,
हम कड़े श्रम से, धरा पर स्वर्ग लाएंगे !
संकटों में भी सदा हम मुसकराएंगे !
.
जगमगाते दीपकों से प्यार है,
पास फूलों का मधुर उपहार है,
लक्ष्य में हँसता हुआ संसार है,
एक दिन दुनिया सुनहरी कर दिखाएंगे !
संकटों में भी सदा हम मुसकराएंगे !
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[16] महान् ध्रुव
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सुनीति और सुरुचि थीं
राजा उत्तानपाद की दो रानी,
थी प्रिय अधिक सुरुचि राजा को
इससे वह करती रहती थी मनमानी।
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ध्रुव की माँ थीं सुनीति
और सुरुचि-पुत्र थे उत्तम,
दोनों शिशु खेला करते
थे राजा को प्रिय-सम !
.
एक दिवस शिशु उत्तम को
गोद लिए खेलाते थे राजा,
और अचानक तभी वहाँ आये ध्रुव
देख, लगे चढ़ने अंक पिता के
उत्तम बोले —
‘आ जा !’
.
पर, रानी सुरुचि वहीं बैठी थीं,
जिनके भय से
ले न सके वे ध्रुव को
गोद सदय से !
.
सौत-पुत्र ध्रुव से
ईर्ष्या से बोली गर्वीली रानी —
‘हे ध्रुव !
तुमने इतनी-सी बात न जानी
.
हो तुम राजा के पुत्र सही
पर, हो न योग्य राज्यासन के
यदि पाना हो राजा की गोद तुम्हें,
तो जन्मो फिर से मेरे कोखासन से।’
.
खा चोट हृदय पर
रानी के कटु वचनों की,
बालक ध्रुव
तत्काल लगे रोने
साँसें भर-भर !
.
राजा मौन रहे
मानों ध्रुव हो पुत्र न उनका,
इतने अधिक सुरुचि के थे वश में
इतना अधिक उन्हें था उनका डर।
.
आहत ध्रुव रोते-रोते
अपनी माँ के पास गये फिर,
माँ ने बेटे को
दुलराया, सहलाया,
रोने का पूछा करण,
पर, ध्रुव ने नहीं बताया कुछ
केवल रोते रहे
झुकाए सिर !
.
इस पर
समझायी सारी बात दासियों ने,
सुन
ध्रुव-माँ भी धीरज छोड़ लगी रोने !
फिर दुख से बोली —
‘बेटा !
यह दुर्भाग्य हमारा है,
होनहार के आगे
अरे, न चलता कोई चारा है !
.
पर, तुम हिम्मत मत हारो,
कुछ ऐसी युक्ति विचारो
जिससे पाओ ऊँचा पद
अचल-अटल
ऐसा कि जहाँ से
हिला-हटा न तनिक भी पाये
देव दनुज मानव बल।’
.
फिर माँ ने ध्रुव को युक्ति बतायी
‘बेटा ! मेरे मत में
सब से ऊँचा-सत्य जगत में।
.
जिसने सत को पाया
उसका ही यश
सब लोकों ने गाया!
.
तुम भी सत्य उपासक बन
पा सकते हो वह पद
जिसके आगे तुच्छ
महत् राज्यासन!
.
सुन चल पडे तभी बालक ध्रुव
करने पूरी माँ की बात,
भाग्य बदलने अपना
मधुवन में किया उन्होंने
तप दिन-रात!
.
पाना सत्य —
यही थी बस एक लगन,
सदा इसी में
डूबा रहता उनका मन !
.
सत्य ज्ञान की ज्योति जगाना,
अज्ञान-तिमिर को दूर भगाना।
.
बना हुआ था लक्ष्य यही,
पाना था उनको तथ्य यही।
.
पढ-लिख कर,
गुरुओं से सुनकर,
औ' जीवन में अनुभव कर
बुद्धि परिश्रम से
जिसको पाकर छोड़ा,
ध्रुव ने बचपन से ही
जीवन की सुख सुविधाओं से
मुँह मोड़ा !
.
तभी जगत में
ध्रुव का नाम हुआ,
ज्ञान-ज्योति से ज्योतित
उनका धाम हुआ,
ज्ञानी बनकर दुर्लभ पद पाया
जो जग में ध्रुव-पद कहलाया !
.
पूर्ण ज्ञान पाकर
ध्रुव लौटे अपने घर !
.
राजा ने पहचानी अपनी भूल बड़ी!
.
आशीष-स्नेह देने
सुनीति-सुरुचि खडीं,
स्वागत करने जनता उमड पड़ी !
.
देख प्रजा का प्रेम तोष,
उत्तानपाद ने ध्रुव को
सौप दिया साम्राज्य कोष।
.
पर, ध्रुव
कोरे ज्ञानी बनकर नहीं रहे
जनहित अगणित काम किये
औ कष्ट सहे।
.
माँ की आज्ञा से
आदर्श गृहस्थ बने।
.
जन-पीड़क यक्षों को
दंडित करने
भीषण युद्ध किये।
.
विजयी
जन-प्रिय ध्रुव ने
वर्षों तक राज्य किया!
.
जग से जो कुछ पाया
वह सब जगे हित
कर दान दिया!
.
माना
नहीं आज हैं ध्रुव-ज्ञानी,
पर है
उनके यश की शेष कहानी
जिसको
घर-घर में कहती
माँ या नानी !
.
उत्तर नभ में
जो सबसे चमकीला स्थिर
तारा है,
लगता जो हम सबको
बेहद प्यारा है —
वह
अद्भुत बाल-तपस्वी
ध्रुव का घर है !
वह
जन-रंजक सम्राट
तरुण-ध्रुव का घर है !
वह अनुपम ज्ञानी और विरागी
ध्रुव का घर है !
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महेंद्रभटनागर,
110 बलवन्तनगर, गांधी रोड,
ग्वालियर — 474 002 [म.प्र.]
फ़ोन : o751-4092908
मो. 08109730048
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