सोमवार, 10 जनवरी 2011

बाल काव्य-संग्रह --- हँस-हँस गाने गायें हम

बाल-साहित्य

डा. महेंद्रभटनागर का बाल काव्य-संग्रह हँस-हँस गाने गाएँ हम !

कविताएँ

--------------------------------

1 वर्षा

2 खेलें खेल

3 अच्छे लड़के

4 जागो

5 माँ

6 हम ....

7 काम हमारा

8 हमारा देश

9 हिमालय

10 दीपावली

11 सबेरा

12 बादल

13 चाँद

14 किशोर

15 हम मुसकुराएंगे!

16 महान् ध्रुव

--------------------------------

[1] वर्षा

--------------------------------

सर-सर करती चले हवा

पानी बरसे झम-झम-झम !

.

आगे-आगे

गरमी भागे

हँस-हँस गाने गाएँ हम !

सर-सर करती चले हवा

पानी बरसे झम-झम-झम

.

मेंढ़क बोलें

पंछी डोलें

बादल गरजें; जैसे बम !

सर-सर करती चले हवा

पानी बरसे झम-झम-झम !

.

नाव चलाएँ

ख़ूब नहाएँ

आओ कूदें धम्मक - धम !

सर-सर करती चले हवा

पानी बरसे झम-झम-झम !

--------------------------------

[2] खेलें खेल

--------------------------------

छुक-छुक करती आयी रेल

आओ, हिल-मिल खेलें खेल !

.

आँख-मिचैनी, खो-खो और

दौड़ा-भागी सब-सब ठौर !

.

टिन्नू मिन्नू पिन्नू साथ

हँस-हँस और मिला कर हाथ !

.

कूदें - फादें घर दीवार

चाहें जीतें, चाहें हार !

.

कसरत करना हमको रोज़

ताक़तवर हो अपनी फ़ौज !

.

सब कुछ करने को तैयार;

नहीं कभी भी हों बीमार !

.

आपस में हम रक्खें मेल !

.

छुक-छुक करती आयी रेल

आओ, हिल-मिल खेलें खेल !

--------------------------------

[3] अच्छे लड़के

--------------------------------

हम बालक हैं, हम बन्दर हैं,

हम भोले-भाले सुन्दर हैं !

.

हर रोज़ सुबह उठ जाते हैं,

मुँह धोकर बिस्कुट खाते हैं !

.

दो कप चाय गरम जब मिलती

तब यह सूरत जाकर खिलती !

.

फिर, पंडितजी से पढ़ते हैं,

हम नहीं किसी से लड़ते हैं !

.

माँ के कहने पर चलते हैं,

ना रोते और मचलते हैं !

.

दिन भर हँसते-गाते रहते,

भारत-माता की जय कहते !

.

हम रहते भाई मिल-जुल कर

हो भला हमें फिर किसका डर ?

--------------------------------

[4] जागो

--------------------------------

चहक रहीं है चिड़ियाँ चीं-चीं

तुमने अब क्यों आँखें मीचीं ?

.

हुआ सबेरा जागो भैया

जागा तोता, जागी गैया !

.

यदि जल्दी उठ जाओगे,

तो खूब मिठाई पाओगे !

.

अम्मा ने चाय बनायी है,

मीठा हलुआ भी लायी है !

.

खाना है तो बिस्तर छोड़ो,

फ़ौरन मुँह को धोने दौड़ो !

--------------------------------

[5] माँ

--------------------------------

माँ ! तू हमको प्राणों से भी प्यारी है !

.

मीठा दूध पिलाती है

रोटी रोज़ खिलाती है

हँस-हँस पास बुलाती है

गा-गा गीत सुलाती है

दुनिया की सब चीज़ों से तू न्यारी है !

माँ ! तू हमको प्राणों से भी प्यारी है !

.

कहती हर रात कहानी,

बातें अपनी पहचानी,

सुन जिनको हम खुश होते

सुख सपनों में जा सोते,

हे माँ तुझ पर सब वैभव बलिहारी है !

माँ ! तू हमको प्राणों से भी प्यारी है !

--------------------------------

[6] हम ....

--------------------------------

हम छोटे - छोटे भोले - भाले सारे बाल

पढ़-लिख पर जल्द बनेंगे वीर जवाहरलाल !

.

अच्छे-अच्छे काम करेंगे

नहीं किसी से ज़रा डरेंगे

दुनिया में कुछ नाम करेंगे

भारत-माता को कर देंगे हम मालामाल !

पढ़-लिख कर जल्द बनेंगे वीर जवाहरलाल!

हम छोटे - छोटे भोले - भाले सारे बाल !

.

जन-जन का दुख दूर करेंगे

सेवा हम भरपूर करेंगे

बाधा चकनाचूर करेंगे

झूठे धोखेबाजों की नहीं गलेगी दाल !

पढ़-लिख कर जल्द बनेंगे वीर जवाहरलाल !

हम छोटे - छोटे भोले - भाले सारे बाल !

--------------------------------

[7] काम हमारा

--------------------------------

भारत की आशा हैं हम, बलवान,

साहसी, वीर बनेंगे,

इसकी सीमा-रक्षा को हँस-

हँस, सैनिक रणधीर बनेंगे!

.

हमको आगे बढ़ते जाना,

हर पर्वत पर चढ़ते जाना,

भूल न पीछे पैर हटाना,

इतना केवल काम हमारा !

कितना सुन्दर, कितना प्यारा !

.

भारत के दिल की धड़कन हम

थक कर बैठ नहीं जाएंगे,

भूख-ग़रीबी का युग जब-तक

है, चैन न किंचित पाएंगे!

.

घर-घर में जा दीप जलाना,

रोते हैं जो उन्हें हँसाना,

आज़ादी के गाने गाना,

इतना केवल काम हमारा !

कितना सुन्दर, कितना प्यारा !

--------------------------------

[8] हमारा देश

--------------------------------

आज हमारा देश नया है !

.

ये खेत हज़ारों मीलों तक

फैले हैं कितने हरे- हरे,

गेहूँ-मक्का-दाल-चने-जौ

चावल से सारे भरे - भरे !

.

धरती-माँ का वेश नया है !

आज हमारा देश नया है !

.

इसमें चिड़ियाँ नीली-पीली

सित-लाल-गुलाबी गाती हैं,

ऊषा अपने गालों पर प्रति-

दिन नूतन रंग सजाती है !

.

बुरा अँधेरा बीत गया है !

आज हमारा देश नया है !

--------------------------------

[9] हिमालय

--------------------------------

भारत-माँ का ताज हिमालय !

.

ऊँचा-ऊँचा नभ को छूता,

युग-युग जगने वाला प्रहरी,

जगमग-जगमग करता जिसमें

किरनों से मिल बर्फ़-सुनहरी,

.

तूफ़ानों का या हमलों का

जिसको न कभी भी लगता भय !

भारत-माँ का ताज हिमालय !

.

बहती जिसमें माला-सी दो

गंगा - यमुना की धाराएँ,

टकरा-टकरा कर छाती से

जिसके जाती बरस घटाएँ,

.

हरी-भरी की धरती जिसने

किया हमारा जीवन सुखमय !

भारत-माँ का ताज हिमालय !

--------------------------------

[10] दीपावली

--------------------------------

जगमग-जगमग करते दीपक

लगते कितने मनहर प्यारे,

मानों आज उतर आये हैं

अम्बर से धरती पर तारे !

.

दीपों का त्योहार मनुज के

अतंर-तम को दूर करेगा,

दीपों का त्योहार मनुज के

नयनों में फिर स्नेह भरेगा!

.

धन आपस में बाँट-बूट कर

एक नया नाता जोड़ेंगे,

और उमंगों की फुलझड़ियाँ

घर-घर में सुख से छोड़ेंगे !

.

दीपावलि का स्वागत करने

आओ हम भी दीप जलाएँ,

दीपावलि का स्वागत करने

आओ हम भी नाचे गाएँ !

--------------------------------

[11] सबेरा

--------------------------------

हर रोज़ सबेरा होता है !

.

ज्यों ही दूर गगन में उड़कर

यह काली-काली रात गयी-

झट सूरज पूरब से आकर

बिखरा देता है धूप नयी !

जग जाता है जिम्मी मेरा

फिर और न पलभर सोता है !

हर रोज़ सबेरा होता है !

.

चिड़ियाँ घर-घर में चीं-चीं

शोर मचातीं, गाती आतीं,

सोई जीजी को शरमातीं

और जगाकर उड़-उड़ जातीं,

सब अपने कामों में लगते

आराम सभी का खोता है !

हर रोज़ सबेरा होता है !

.

टन-टन बजती घंटी चलते

धरती पर जब दो बैल बड़े

देखो हल लेकर जाने को

हैं, कितने पथ पर कृषक खड़े,

खेतों में जाकर इसी समय

होरी फसलें बोता है !

हर रोज़ सबेरा होता है !

--------------------------------

[12] बादल

--------------------------------

ये घनघोर बरसते श्यामल-बादल !

.

निर्भय नभ में उमड़-घुमड़ कर छाए,

देख धरा ने नाना रूप सजाए,

स्वागत करने नव-वृक्ष उमग आए,

पल्लव-पल्लव में आज मची हलचल !

ये घनघोर बरसते श्यामल-बादल !

.

नदियाँ जल से पूर गयीं मटमैली,

गिट्टक-टिल्लू ने मिल होली खेली,

हाथों में कागज़ की नावें ले लीं,

सड़कों पर पानी, गलियों में दलदल !

ये घनघोर बरसते श्यामल-बादल !

.

तालों पर मेंढ़क करते टर-टर-टर,

दीपक पर दीमक़ उड़ती फर-फर-फर,

आओ झूला झूलें जी भर-भर कर,

सुख पाएँ वर्षा का सब बाल-सरल !

ये घनघोर बरसते श्यामल-बादल !

--------------------------------

[13] चाँद

--------------------------------

चाँद आसमान में निकल रहा,

श्याम रूप रात का बदल रहा !

.

मुँह पुनीत प्यार से भरा हुआ,

मन सरल दुलार से भरा हुआ,

.

आ रहा किसी सुदेश से अभी,

मंद - मंद मुसकरा रहा तभी !

.

साथ रोशनी नयी लिए हुए,

वेश मौन साधु-सा किए हुए ;

.

नींद का संदेश भेजता हुआ ,

स्वप्न भूमि पर बिखेरता हुआ,

.

दूर के पहाड़ से सरक-सरक,

झूल पेड़-पेड़ में, झलक-झलक,

.

और है न ध्यान, खेल में मगन,

सिर्फ़ एक दौड़ की लगी लगन !

.

आसमान चढ़ रहा बिना रुके,

ढाल औ' चढ़ाव पर बिना झुके !

.

चाँद का बड़ा दुरूह काज है,

व्योम का तभी न चाँद ताज है !

--------------------------------

[14] किशोर

--------------------------------

शेर-से दहाड़ते चलो,

आसमान फाड़ते चलो !

.

वीर हो महान देश हिंद के विजय करो,

मातृभूमि की व्यथा-जलन समस्त तुम हरो,

देख मौत सामने नहीं डरो, नहीं डरो !

तुम स्वतंत्र-स्वर्ण नव-प्रभात के हरेक

शत्रु को पछाड़ते चलो !

शेर से दहाड़ते चलो,

आसमान फाड़ते चलो !

.

देख आँधियाँ डरावनी नहीं, कभी रुको,

साहसी किशोर शक्तिमान हो, नहीं झुको,

भूख-प्यास झेलते बढ़ो, नहीं कभी थको !

राह रोकता मिले अगर कहीं पहाड़ तो

उसे उखाड़ते चलो !

शेर-से दहाड़ते चलो,

आसमान फाड़ते चलो !

--------------------------------

[15] हम मुसकराएंगे

--------------------------------

संकटों में भी सदा हम मुसकराएंगे !

.

हम करेंगे सामना तूफ़ान का

डर नहीं हमको तनिक भी प्राण का

ध्यान केवल मातृ - भू के मान का

देश की स्वाधीनता के गीत गाएंगे !

संकटों में भी सदा हम मुसकराएंगे !

.

हो भले ही राह में बाधा प्रबल

हम रहेंगे निज भरोसे पर अटल,

एकता हमको बनाएगी सबल,

हम कड़े श्रम से, धरा पर स्वर्ग लाएंगे !

संकटों में भी सदा हम मुसकराएंगे !

.

जगमगाते दीपकों से प्यार है,

पास फूलों का मधुर उपहार है,

लक्ष्य में हँसता हुआ संसार है,

एक दिन दुनिया सुनहरी कर दिखाएंगे !

संकटों में भी सदा हम मुसकराएंगे !

--------------------------------

[16] महान् ध्रुव

--------------------------------

सुनीति और सुरुचि थीं

राजा उत्तानपाद की दो रानी,

थी प्रिय अधिक सुरुचि राजा को

इससे वह करती रहती थी मनमानी।

.

ध्रुव की माँ थीं सुनीति

और सुरुचि-पुत्र थे उत्तम,

दोनों शिशु खेला करते

थे राजा को प्रिय-सम !

.

एक दिवस शिशु उत्तम को

गोद लिए खेलाते थे राजा,

और अचानक तभी वहाँ आये ध्रुव

देख, लगे चढ़ने अंक पिता के

उत्तम बोले

आ जा !

.

पर, रानी सुरुचि वहीं बैठी थीं,

जिनके भय से

ले न सके वे ध्रुव को

गोद सदय से !

.

सौत-पुत्र ध्रुव से

ईर्ष्या से बोली गर्वीली रानी

हे ध्रुव !

तुमने इतनी-सी बात न जानी

.

हो तुम राजा के पुत्र सही

पर, हो न योग्य राज्यासन के

यदि पाना हो राजा की गोद तुम्हें,

तो जन्मो फिर से मेरे कोखासन से।

.

खा चोट हृदय पर

रानी के कटु वचनों की,

बालक ध्रुव

तत्काल लगे रोने

साँसें भर-भर !

.

राजा मौन रहे

मानों ध्रुव हो पुत्र न उनका,

इतने अधिक सुरुचि के थे वश में

इतना अधिक उन्हें था उनका डर।

.

आहत ध्रुव रोते-रोते

अपनी माँ के पास गये फिर,

माँ ने बेटे को

दुलराया, सहलाया,

रोने का पूछा करण,

पर, ध्रुव ने नहीं बताया कुछ

केवल रोते रहे

झुकाए सिर !

.

इस पर

समझायी सारी बात दासियों ने,

सुन

ध्रुव-माँ भी धीरज छोड़ लगी रोने !

फिर दुख से बोली

बेटा !

यह दुर्भाग्य हमारा है,

होनहार के आगे

अरे, न चलता कोई चारा है !

.

पर, तुम हिम्मत मत हारो,

कुछ ऐसी युक्ति विचारो

जिससे पाओ ऊँचा पद

अचल-अटल

ऐसा कि जहाँ से

हिला-हटा न तनिक भी पाये

देव दनुज मानव बल।

.

फिर माँ ने ध्रुव को युक्ति बतायी

बेटा ! मेरे मत में

सब से ऊँचा-सत्य जगत में।

.

जिसने सत को पाया

उसका ही यश

सब लोकों ने गाया!

.

तुम भी सत्य उपासक बन

पा सकते हो वह पद

जिसके आगे तुच्छ

महत् राज्यासन!

.

सुन चल पडे तभी बालक ध्रुव

करने पूरी माँ की बात,

भाग्य बदलने अपना

मधुवन में किया उन्होंने

तप दिन-रात!

.

पाना सत्य

यही थी बस एक लगन,

सदा इसी में

डूबा रहता उनका मन !

.

सत्य ज्ञान की ज्योति जगाना,

अज्ञान-तिमिर को दूर भगाना।

.

बना हुआ था लक्ष्य यही,

पाना था उनको तथ्य यही।

.

पढ-लिख कर,

गुरुओं से सुनकर,

' जीवन में अनुभव कर

बुद्धि परिश्रम से

जिसको पाकर छोड़ा,

ध्रुव ने बचपन से ही

जीवन की सुख सुविधाओं से

मुँह मोड़ा !

.

तभी जगत में

ध्रुव का नाम हुआ,

ज्ञान-ज्योति से ज्योतित

उनका धाम हुआ,

ज्ञानी बनकर दुर्लभ पद पाया

जो जग में ध्रुव-पद कहलाया !

.

पूर्ण ज्ञान पाकर

ध्रुव लौटे अपने घर !

.

राजा ने पहचानी अपनी भूल बड़ी!

.

आशीष-स्नेह देने

सुनीति-सुरुचि खडीं,

स्वागत करने जनता उमड पड़ी !

.

देख प्रजा का प्रेम तोष,

उत्तानपाद ने ध्रुव को

सौप दिया साम्राज्य कोष।

.

पर, ध्रुव

कोरे ज्ञानी बनकर नहीं रहे

जनहित अगणित काम किये

औ कष्ट सहे।

.

माँ की आज्ञा से

आदर्श गृहस्थ बने।

.

जन-पीड़क यक्षों को

दंडित करने

भीषण युद्ध किये।

.

विजयी

जन-प्रिय ध्रुव ने

वर्षों तक राज्य किया!

.

जग से जो कुछ पाया

वह सब जगे हित

कर दान दिया!

.

माना

नहीं आज हैं ध्रुव-ज्ञानी,

पर है

उनके यश की शेष कहानी

जिसको

घर-घर में कहती

माँ या नानी !

.

उत्तर नभ में

जो सबसे चमकीला स्थिर

तारा है,

लगता जो हम सबको

बेहद प्यारा है

वह

अद्भुत बाल-तपस्वी

ध्रुव का घर है !

वह

जन-रंजक सम्राट

तरुण-ध्रुव का घर है !

वह अनुपम ज्ञानी और विरागी

ध्रुव का घर है !

--------------------------------

महेंद्रभटनागर,

110 बलवन्तनगर, गांधी रोड,

ग्वालियर 474 002 [म.प्र.]

फ़ोन : o751-4092908

मो. 08109730048

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें